राम सिंह

राम सिंह (Ram Singh) 

(माताः स्व. पार्वती देवी, पिताः स्व. मोहन सिंह)

जन्मतिथि : 4 जुलाई 1937

जन्म स्थान : कफलानी (गैना)

पैतृक गाँव : कफलानी जिला : पिथौरागढ़

वैवाहिक स्थिति : विवाहित बच्चे : 1 पुत्र, 2 पुत्रियाँ

शिक्षा : पीएच.डी.

प्राथमिक शिक्षा- प्राइमरी पाठशाला, तिलढुकरी (पिथौरागढ़)

जूनियर हाईस्कूल- मिडिल स्कूल, बजेटी (पिथौरागढ़)

हाईस्कूल, इण्टर- राजकीय इण्टर कालेज, पिथौरागढ़

बी.ए., एम.ए. (हिन्दी, स्वर्ण पदक)- लखनऊ विश्वविद्यालय

पीएच.डी.- लखनऊ विश्वविद्यालय

जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ः अपनी निरक्षर माता से उच्चतर शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना। लखनऊ पहुँच कर नए समाज से परिचय और ऊपर उठने की लालसा जगी।

प्रमुख उपलब्धियाँ : लखनऊ में अपने सहपाठी लेखक मित्रों के प्रेरणा से स्वतंत्र भारत, नवजीवन, त्रिपथगा, ग्राम्या इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे। तबसे सिलसिला चलता रहा। 1963 में सरकारी सेवा में प्रवेश और जून 1997 को राजकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त। लोक जीवन, पुरातत्व, संस्कृति, भाषा ;बोलीद्ध, स्थानीय इतिहास पर काफी लिखा है। पं. नैनसिंह यात्रा साहित्य तथा चम्पावत के जन इतिहास पर ‘रागभाग काली कुमाऊं’ पुस्तकें प्रकाशित। सुभाष बोस के सैनिकों के अनुभव पर आधारित पुस्तक, नई दिल्ली से प्रकाशनाधीन। कृषि तथा ग्रामोद्योग शब्दावली, भारत (जागर गाथा) तथा अन्य पुस्तकों का लेखन जारी है। देश की राष्ट्रीय एकता हेतु अपने विचारों को रामजनम परजा के उप नाम से पत्र-पत्रिकाओं में लेखन। हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द के लिए समर्पित रहने की उत्कट अभिलाषा है। अपने स्वतंत्र विचारों पर मजबूती से डटे रहने के इरादे से सरकारी नौकरी से निकाले जाने की स्थिति में अपने आर्थिक स्वावलम्बंन हेतु 1976 में स्टील फर्नीचर का उद्योग ‘लौह लक्ष्मी’ स्थापित किया। इससे प्रेरणा लेकर इस समय समूचे पिथौरागढ़ जनपद में बीसियों इकाइयों में स्थानीय उद्यमी कार्य कर रहे हैं। इसे मैं अपनी उपलब्धि समझता हूं कि मेरे काम से प्रेरणा लेकर स्थानीय उद्यमियों में भी उद्योग स्थापित करने की हिम्मत बँधी।

युवाओं के नाम संदेशः उत्तराखण्ड की खनिज, वन, पशु सम्पदा लूटने-खसोटने वालों को उत्तराखण्ड से निकाल दें। इसे पूर्ववत् हरा-भरा, पुष्पित-पल्लवित, उड़ान भरते पक्षियों के कलरव, वन्य पशुओं के स्वच्छन्द विहार के साथ, नदियों के कल-कल के बीच प्रफुल्लित, तनाव मुक्त, पूर्णतया आत्मनिर्भर, सहिष्णु मानव की निवास स्थली में बदल दें।

विशेषज्ञता : लोक जीवन, पुरातत्व, संस्कृति, भाषा, स्थानीय इतिहास।

नोट : यह जानकारी श्री चंदन डांगी जी द्वारा लिखित पुस्तक उत्तराखंड की प्रतिभायें (प्रथम संस्करण-2003) से ली गयी है।

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One Thought to “राम सिंह”

  1. Bhagat

    Ram singh ji aapne jo bhi koshish ki hai wah gazab ki hai. Ek taraf mata ko siksha aur doori taraf berozgari samasya jad se ukhadne ki pahal bahut srahniya hai. Aap hi jaise logon ki jaroorat hai uttarakhand ke liye. Uttarakhand milna alag baat hai aur Uttarakhandi banana alag. Aap wakai uttarakhand ke sapoot hain. Aapko Salaaaaaaaaaaaaaam.

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